बुधवार, 5 सितंबर 2012

बहुरूपिया

बहुरूपिया
वह अकेला था
या कई लोगों का
मिला जुला रूप था अकेले
उसने क्या क्या नहीं किया
पेट खातिर
कभी हनुमान कभी शिव
कभी हिजड़ा और कभी नचनिया
की भूमिका में
जब कभी बना हनुमान
बच्चे पूंछ पकड़ खींचते
मुंह निपोरता बानरों सा
बच्चे चिचियाकर भागते बहुत दूर
और गरियाते,अरे साला !
आदमी है कि बानर रे !
हे हनुमान जी माफ करना
गलती हो गयी
हनुमान जी हंसते
पूंछ से देते शीर्वाद
जब कभी बनता नचनिया
बच्चे खुश हो
खूब करते लिहो- लिहो
सके बनावटी स्तनों पर करते बवाल
कितने ही भूल जाते अपनी पत्नियां
घूमते आगे-पीछे
और मौका मिलते ही
नहीं चूकते अपना दांव
वह रह जाता जी ममोस कर
एक बार तो हद ही हो गयी
जब बना था हिजड़ा
बच्चे जानने को उत्सुक
इसका होता कैसा चिह्न
उठा दिये थे घाघरा ही ऊपर तक
शरमा कर रह गया वह
उसने सोचा इससे बेहतर
मर जाना ही ठीक
उसे क्या मालूम यह सोच ही
सच होने जा रही
उसे अंतिम बार देखा
जब बना था शिव
गले में लटकाए जहरीला सांप
हो भाई ! सांप भी ऐसा कि
फुफकारे तो सूख जाए कलेजा
और क्या बताएं हो भाई !
अचानक जब गिरा था जमीन पर
लोग पीटते रहे ताकलयां बेसुध
अब जबकि
सजाई जाने लगी अर्थी
लोग देखते रहे
उसकी मृत देह में एक अदंभी
कलाकार के हूनर का तिलिस्म
उसकी शव यात्रा में शामिल लोग
मानने को तैयार थे
कि उसकी कला
का अंतिम एपीसोड था यह
जबकि छोड़ चुका था वह
अपनी बीवी के कंधों  पर
जवान होती दो बेटियां।
 
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुखटिहरीगढ़वाल  उत्तराखण्ड249121मोबा0-09452228335                                                                        ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

रविवार, 5 अगस्त 2012

भूख के विरुद्ध

              भूख के विरुद्ध














           वि श्व की धरोहर में शामिल नहीं है  
           गंगा यमुना का उर्वर मैदान  
            जहां धान रोपती बनिहारिनें   
           रोप रही हैं  
           अपनी समतल सपाट सी जिंदगी   
           उनकी झुकी पीठें  
           जैसे पठार हो कोई 
           और निर्मल झरना  
            झर रहा हो लगातार 
           उनके गीतों में 
           धान सोहते हुए सोह रही हैं  
           अपने देश की समस्याएं  
           काटते हुए काट रही हैं  
           भूख की जंजीर 
           और ओसाते हुए 
           छांट रही हैं  
          अपने देश की तकदीर   
          लेकिन  
           अब उनके धान रोपने के दिन गये  
           धान सोहने के दिन गये 
           धान काटने के दिन गये  
           धान ओसाने के दिन गये 
            कोठली में धान भरने के दिन गये 
            अब धान सीधे मंडियों में पहुंचता है 
            सड़ता है भंडारों में 
            और इधर पेट 
            कई दिनों से अनशन पर बैठा है 
            भूख के विरुद्ध 
            जबसे काट लिए हैं इनके हाथ 
            मशीनों ने  बड़ी संजीदगी से।


संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
             राजकीय इण्टर कालेज गौमुख,  
      टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
             मोबा0-09452228335 
            ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

आरसी चौहान की कविता-वजूद




वजूद
कितना ही   
खारिज करो  
साहित्य विशेषज्ञों 
लेकिन
याद करेंगे  लोग मुझे 
अरावली पहाड़- सा 
घिसा हुआ।

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड249121
                 मेाबा0-09452228335
                 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com