शुक्रवार, 31 मार्च 2017

मशीनों के खिलाफ : आरसी चौहान







चैता की धुन में
थिरकती गेहूं की बालियां को
थाहते हंसुए
तेज कर लिए हैं अपने दांत
मशीनों के खिलाफ
ताकि फिर कहीं कोई
किसान
न मिले
लटकता हुआ।
संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-puravaipatrika@gmail.com

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

धरती के अकुलाये हराई में : आरसी चौहान



 















धरती से संवाद करते हुए
वह आंखों से नापता है
आसमान की दूरी


सीपियों के मुंह सा खुले
धरती के अकुलाये हराई में
स्वाती बूंदों सा
डालता है एक एक बीज


धरती को और चाकलेटी बनाते हुए
महसूसता है बीजों के अंखुआने की
कुलबुलाहट


अपने पसीने की बूंदों का
बादलों में बदलते हुए
देखता है खुशियों का इंद्रधनुष
जहां भूख ने आत्म समर्पण कर लिया है
और एक झण्डा
लहराने लगा है श्रम का।

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-puravaipatrika@gmail.com

मंगलवार, 31 जनवरी 2017

उसने कहा

उसने कहा-  
तुम भविष्य के हथियार हो  
बात तब समझ में आयी  
जब  
मिसाइल की तरह  
जल उठा मैं

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

कोई बच्चा स्कूल जा रहा है : आरसी चौहान



कोई बच्चा स्कूल जा रहा है

सरपट दौड़ती सड़क के किनारे
उंघते फुटपाथ पर
सो रहा एक बच्चा
और उसकी मां
बुन रही अपनी सांसों का गर्म स्वेटर
ताकि बड़े होते बच्चे को
जाड़े में पहनाकर भेज सके स्कूल

बच्चा पहचानने लगा है
रंगों का तिलिस्म
बतियाने लगा है अपने सुख दुख की बातें

वह जानने लगा है
पेड़ पर फुदकती चिड़ियों के बारे में
उनके सुन्दर सुन्दर घोसलों के बारे में

बच्चा पूछता है मां से
अपने घोसले के बारे में
अट्टालिकाओं को निहारते हुए
मां दिखाती है
बड़ा सा नीला आसमान

बच्चा कहता है हाथ फैलाकर
इत्ता बड़ा घर
? ? ?

मां उसके आंखों में काजल आंज रही है
माथे पर टीका पार रही है
उसकी पीढी में
पहली बार कोई बच्चा
स्कूल जा रहा है।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

बुधवार, 30 नवंबर 2016

एक बार फिर : आरसी चौहान



एक बार फिर

सब जन मरेंगे
आपकी स्मृतियां,यश,गुण,प्रतिष्ठा
सब दफन हो जाएगा

जी चुकी पृथ्वी अपनी उम्र का
अधिकांश हिस्सा
सूर्य पार कर चुका
अपनी उम्र का युवावस्था
मरेगा सूर्य
जब लाल दानव में बदलते हुए
आगोश में समा जाएंगे
उसके पार्थिव पुत्र
बुद्ध,शुक्र और पृथ्वी

जलता हुआ सूर्य
सबको एक चम्मच राख में बदल देगा
उस दिन तुम्हारे लिखे हुए
तमाम मोटे मोटे ग्रंथ
तुम्हारी आकांक्षाओं
और महत्वाकांक्षाओं का ज़खीरा
सिमट जायेगा एक बिंदु में


बिंदु के विस्फोट होने
और ब्रह्माण्ड के बनने तक
पृथ्वी अकुलायी हुई निकलेगी
सृष्टि का द्वार खोलते हुए एक बार फिर।

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

धर्म : आरसी चौहान


















धर्म

धर्म बिना गैस का चूल्हा है
जिस पर सेंकी जाती हैं
अफवाहों की रोटियां
बनाए जाते हैं खूंखार पकवान
और आदमी
मनाता है
इंसानियत खत्म होने का जश्न
जैसे जीत लिया हो उसने पूरी धरती।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

खूबसूरत धरती के बारे में : आरसी चौहान


खूबसूरत धरती के बारे में

वे लिख रहे हैं सदियों से
और नहीं लिख पा रहे हैं
आदमी को आदमी

वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही हैं रेत

वे पहाड़ों के बारे में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे में भी
कि
देखते ही देखते बदल जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़

पृथ्वी को लिखना चाहते हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा रही है

बच्चे जिनपर अभी तक लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते कूदते
खरगोश के बालों की तरह मुलायम
बताया गया है

यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने वाली सरहदों को भी 
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से बतियाना चाहते हैं         


इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता हुआ
और पृथ्वी को लिखा है जननी
हम इनके भूगोल को कब समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन एक
खूबसूरत धरती के बारे में ?