शुक्रवार, 17 मई 2013

पृथ्वी को रोटी बनते हुए







पृथ्वी को रोटी बनते हुए

आपको कौन कहता है
गरीबों पर लिखने के लिए कविता
कभी उनकी हल के फाल बनकर
तो कभी फावड़े की धार बनकर
लूटना चाहते हो वाहवाही
उन्हें मालूम है
उन पर लिखी कविताएं बटोरती हैं शोहरत
लिखने वाला और भी
बटोरता है पुरस्कारों पर पुरस्कार
इससे भद्दा मजाक
और क्या हो सकता है उनसे
कि उनके पसीने की गंध पर
खिलती है पुरी दुनिया
चहकता है जीवन
और वह
सपने में देखता है
पृथ्वी को रोटी बनते हुए।




संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) 
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121         मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com