आरसी चौहान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आरसी चौहान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 22 सितंबर 2018

बुनकर : आरसी चौहान




बुनकर

साड़ियां किसे अच्छी नहीं लगती
भोरहरी किरणों सा लाल लाल चटख
रंगों सी चमकती
मुस्कराती फसलों सी लहलहाती
हरी हरी साड़ियां
आसमान को जीभ बिराती
नीली नीली साड़ियां

मानों बुनकरों ने चमकती आंखों का
मोती जड़ दिया हो
सुर्ख लाल रंग में
निचोड़ दिया है अपना लहू
अपने बच्चों की खिलखिलाहट
सजा दिया है फूलों में
पत्नी के खुशियों की हरियाली
भर दिया है पत्तियों में

जब देखता है किसी मेम को हिरनी सा
उछलती इन साड़ियों में
मन नाच उठता है मोर सा

लेकिन
तमाम तमाम बुनकरों की
घायल हिरनियों सी उंगलियां
धागों के जंगलों में उलझी
खोज रही हैं जीने की नई राह।





संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
                276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

बुधवार, 15 अगस्त 2018

पृथ्वी के जन्म पर : आरसी चौहान









पृथ्वी के जन्म पर

पृथ्वी के जन्म पर
जब गाया गया होगा पहले पहल मंगलगीत
फूल की तरह झरे होंगे झरने
पहाड़ों से करते हुए अठखेलियां
पृथ्वी हंसी होगी खिलखिलाकर
और बही होंगी जीवनदायिनी नदियां

उसके शु़द्धिकरण में
सम्भवतः बादलों के पूर्वजों ने
नहलाये होंगे पवित्र जल से
पृथ्वी ने बदली होगी अपने
शैलों के पुराने कपड़े
लहराई होगी हवा में लताओं से
अपने खुले बाल
ओढ़ी होगी चहकते आकाश में
चिड़ियों की ओढ़नी

और अब ये कि आज
उसके धड़कते जंगलों सा फेफड़े
और लहलहाती फसलों के बीच
जीवन का हिरन
कुलांचे भर रहा है।


 संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

बुधवार, 18 जुलाई 2018

फुलेसरी बुआ : आरसी चौहान




फुलेसरी बुआ

गांव की पृष्ठभूमि पर
आज तक लिखी गयी होंगी
ढेर सारी कविताएं
जिसमें गांव को
मोहरा बनाकर
थपथपाई होगी
बहुतों ने अपनी पीठ
और गांव वहीं का वहीं
बैठा रहा गुमसुम

पर इस कविता में
एक गांव जिसकी नसों में
दौड़ती हैं खून की तरह
फुलेसरी फुआ जैसी अनगीनत लड़कियां
और इन लड़कियों से अठखेलियां करता गांव
कब किवदंतियों में बदल गया
किसी को ठीक से कुछ पता भी नहीं

हां !
दादा दादियों की कहानियों में
आ जाती फुलेसरी फुआ
अपने पुरखे पुरनियों के साथ
बैताल पच्चीसी की तरह

उनका यह नाम कैसे पड़ा
और वह पूरे गांव की फुआ कैसे बन गयी ?
इसके बारे में कुछ कह पाना सम्भव नहीं
पर यह कह सकते हैं कि
कुछ वैसे ही जैसे
चांद बन जाता है सभी लोगों का मामा

हां तो फुलेसरी फुआ
गीत गवनई में जितनी आगे थीं
उससे कम नहीं थीं नाचने में भी
उनके जीवन में वह कौन सी घटना घटी कि
जन्म से जीवन निर्वाड़ तक
छोड़ न सकीं अपना गांव
और उनके जीवन के कैनवास का
कौन सा कोना रह गया रंगने से अधूरा
जो गांव की स्मृतियों में
चमक उठता है कभी कभी

एक प्रसंग में कैसे दाखिल हुई
फुलेसरी फुआ
अपने लाव लश्कर के साथ
जब गांव में मनाया जा रहा था पीड़िया त्योहार
जिसकी सबसे बड़ा कलाकार थीं वह
पुलिसिया वर्दी के रौब का कहना ही क्या

कोल्हाड़ में सोये दो बड़े बुजुर्ग
पद में बाप दादा थे दोनों
जो गरियाने में थे बहुत बदनाम
उनको जगाकर ऐसे धमकाया
कि थरथराने लगे थे दोनों
बस इतना ही कहा था बुआ ने
कि साले ! ऐसे सोओगे तो
गांव कि बहू बेटियों का क्या होगा ?

फिर हक्का बक्का दोनों
रात की आंखों में ओझल होते बुआ को
देखते रहे बहुत देर तक
और आंकते रहे कि कौन थी स्याली ?
इत्ती रात गये
पुलिसिया वर्दी में

और अब ये कि
उस अदम्भी कलाकार की
कलाएं किंवदंतियों में बदल गयी हैं
जबकि उस कलाकार को
गुजरे हो गये बहुत दिन।


 संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

मंगलवार, 1 मई 2018

मजदूर : आरसी चौहान





मजदूर

वे आत्महत्या नहीं करते
उन्हें पेट से आगे की दुनिया
भी नहीं दीखती
किसी लेबर चौराहे पर
अब तक नहीं देखा
जीवन से हार मानते

उसने नहीं की
गले में कभी फंदा डालने की जुर्रत
या कलाई की नसें काटने का प्रयास
सोचा भी नहीं होगा
सल्फास के बारे में

गाड़ियों के नीचे आ गया हो कभी
बेदम भूखे लड़खड़ाकर

पेट्रोल छिड़क कर तो कत्तई नहीं
किया अपने को खतम करने की कोशिश
मंड़ई जलने से जला हो कोई
अपने गोरु डांगर बचाने के प्रयास में
थकान मिटाने के नाम पर
पी लिया हो जहरीली शराब
किसी षड़यंत्र के तहत

और अब ये
कि इनके दम पर
जब भी बदला है पृथ्वी का भूगोल
खुबसूरत दीखी है पृथ्वी दूर तलक
पर दीखे नहीं मजदूर कहीं तक दूर दूर।


 संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शनिवार, 31 मार्च 2018

बेरोजगारी के दिनों में : आरसी चौहान




बेरोजगारी के दिनों में


मेरे करीब रहते हुए
अब तुम कितने बदल गये हो
पहचानते हुए भी
मुझे न पहचानने का अभिनय
मेरे बेरोजगारी के दिनों में
कोई ऐसा हुनर तुमसे सीखे।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
                276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com


मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

ईश्वर की अनुपस्थिति में : आरसी चौहान




ईश्वर की अनुपस्थिति में

ऐसी हो धरती
जहां भोरहरी किरणों सा मुलायम
और मां की ममता की तरह
पवित्र हों आदमी

उनके अकुलाए हाथ
बनाने में हों माहिर
खुशियों का मानचित्र

हवाओं को लपेट कर
रख सकें सिरहाने
ऐसा हुनर हो उनमें

जीवन के घाटों पर
बांट सके एक दूसरे का सुख दुख
और जुड़ा सकें एक ही छाया तले
ऐसी हो धरती
ईश्वर की अनुपस्थिति में ।



संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )

        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

                276001

        मोबाइल -7054183354

        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com


शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

स्कूल गया बच्चा : आरसी चौहान



बच्चा फूल है
ओस का
बच्चा फूल है बादल का
बच्चा आधार है भविष्य का
बच्चा धूप की नरम किरण है
बच्चा पेण्डूलम है घड़ी का
घंटियों की टून टून है बच्चा
स्कूल गया बच्चा
अभी लौटा नहीं है रात तक
घड़ी चल रही है
बिना पेण्डूलम की
लेकिन घंटी
बिना पेण्डूलम की कैसे बजेगी
आज मां
बिना पेण्डूलम की घंटी सी हो गई है।

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

बहुत दिनों से : आरसी चौहान






बहुत दिनों से

बहुत दिनों से लिखना चाहता हूं
एक कविता
स्कूल जाते बच्चों पर
जो दुनिया को फूल की तरह
खिलाना चाहते हैं
और इकट्ठा हों रहे हैं
तमाम तमाम स्कूलों में
हर सुबह
हरसिंगार के फूलों की तरह
स्कूलों के फेफड़ों में
भर रहें हैं ताजी हवा से महकते
और स्कूल हो रहे स्पंदित

एक और कविता लिखना चाहता हूं
किसानों के लिए
जिनके हल के फाल तोड़ रहे सन्नाटा
कठोर चट्टानों के
फड़फड़ाते पन्नों पर
दर्ज कर रहे बीजों के एक एक अक्षर
ओर पृथ्वी को रंग देना चाहते हैं
हरियाई फसलों से

एक कविता और लिखना चाहता हूं
सरहद पर जूझते जवानों के लिए
जिनका होना
हमारे देश का सुरक्षित होना है

पर जो बच्चे
अभी स्कूलों से लौटे नहीं हैं
जिन किसानों का कलेवा
उनके हलक के नीचे उतरा नहीं है
घर वापसी के लाख वादों के बावजूद
जो जवान अब कभी लौट नहीं सकते
उन पर कविताएं न लिख पाने के लिए
क्षमा चाहता हूं देशवासियों।



 संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है : आरसी चौहान


  

हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है

मां घंटे की छोटी सुई है घड़ी की
करते हुए काम बढ़ती है धीरे धीरे
पिता मिनट की
जो घंटे और सेकेंड के बीच
बिठाते हुए तारतम्य
बढते हैं मध्यम मध्यम
और बेटा सेकेंड की सुई की तरह
अकुताया
हांक रहा है दोनों को
करते हुए टिक टिक
जैसे हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है।
  संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शनिवार, 30 सितंबर 2017

त्रासदी : आरसी चौहान




त्रासदी

भरे पूरे घर में
बेटे द्वारा अतिथि को
सभी से परिचय करवाना
और हारबेरियम की फाइल में
सूखे पत्तियों सा चिपके
कोने में पड़े मां बाप का परिचय
अतिथि से न करवाना
बहुत देर तक
कचोटता रहा मां बाप को
वैसे यह हमारे समय की
सबसे बड़ी त्रासदी तो नहीं
बनने जा रही।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

रविवार, 27 अगस्त 2017

जो कभी हुआ ही नहीं : आरसी चौहान






एक सपना
जिसे देखा ही नहीं कभी मैंने
अधजगी आंखों से
सुनहली रातों में
डरता रहा बहुत दिनों तक
उसके नुकीले नाखूनों से

एक अंधड़ तूफान
जिसमें उड़ता रहा
जिंदगी भर धुल धक्क्ड़ की माफिक
जो हकीकत में कभी आया ही नहीं

एक फूल
हमेशा करता रहा परेशान
अपनी ताजगी और महक से
जो खिला ही नहीं मेरे जीवन में
कभी संजीदगी से

एक नदी
जो मेरे भीतर
बलखाती हुई कभी बही नहीं
आज आमदा है तोड़ने को
सारे सब्रो का तटबंध

और अब एक प्रेम
जो कभी हुआ ही नहीं किसी से
आज बांध की तरह खड़ा है
डूब कर बह जाने तक
मेरे साथ-साथ।


संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
             राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
             मेाबा0-8858229760ईमेल-puravaipatrika@gmail.com
                


सोमवार, 31 जुलाई 2017

बचपन में : आरसी चौहान




बचपन में

बचपन में एक दौर ऐसा भी था
कि निकल पड़ते साइकिल से
हवा से तेज उड़ियाते
छूने लटका हुआ आकाश
जहां धरती को चूम रहा होता
वह बे रोक टोक

बादलों को छूने की करते कोशिश
और उनकी खरगोश सी पीठ पर
बैठकर उड़ने की लालसा 
रह जाती धरी की धरी

थक हार लौट आते अपने अपने घर
इस आशा में कि
कल तो छू कर ही लौटेंगे क्षितिज
बादलों की पीठ पर बैठ कर ही छोड़ेंगे दम

आज इतने सालों बाद
देखता हूं अपने बच्चों को
पानी में तैराते हुए कागजी नाव
और सोचता  हूं
कि दुनिया घूमते हुए
कितना आगे निकल गई है
जबकि दुनिया है कि
घूम रही है बचपन के पीछे पीछे ।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शुक्रवार, 30 जून 2017

ये मत कहना : आरसी चौहान









ये मत कहना

वे आते हैं आंधी की तरह
धूल उड़ाते हुए
जैसे धरती उनके लिए
फुटबाल हो कोई

झुग्गी झोपड़ियों को
चबाती हुई उनकी मशीनें
मानों खुबसूरती का मापक गढ़ रही हों

उन्हें नहीं मालूम है
झुग्गी झोपड़ियों में लगी
सरपत,सरकंडे व शहतीरें
तन जायेंगी तीर व तलवार की तरह

खुरपी , हंसियां पिघल कर
पाइपगनों में बदल जाएगी

तब ये मत कहना कि
धरती खुबसूरत नहीं है।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शनिवार, 27 मई 2017

खामोशियों के बीच : आरसी चौहान






तुमने पृथ्वी को गाली दी
उसने कुछ नहीं कहा
तुमने आसमान पर उछाला कीचड़
उसने भी तुम्हें कुछ नहीं कहा
तुमने घोले हवाओं में जहर
उसने भी तुम्हें कुछ नहीं कहा
तुमने लतियाया सूरज और चांद को
इन्होंने ने भी कुछ नहीं कहा
तुमने उतार लिए नदियों के सारे कपड़े
इन्होंने ने भी कुछ नहीं कहा
इनके कुछ नहीं कहने
और इनकी खामोशियों के बीच
किसी तूफान के आने की
पूर्व सूचना तो नहीं ?

रविवार, 30 अप्रैल 2017

इनमें से कौन हैं ? : आरसी चौहान

 

 

इनमें से कौन हैं ?

पृथ्वी एक जंगल है
इसमें दो ही आदमी रहते हैं
पहला शिकारी
दूसरा शिकार
आप इनमें से कौन हैं ?

संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शुक्रवार, 31 मार्च 2017

मशीनों के खिलाफ : आरसी चौहान







चैता की धुन में
थिरकती गेहूं की बालियां को
थाहते हंसुए
तेज कर लिए हैं अपने दांत
मशीनों के खिलाफ
ताकि फिर कहीं कोई
किसान
न मिले
लटकता हुआ।
संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-puravaipatrika@gmail.com