एक सपना
जिसे
देखा ही नहीं कभी मैंने
अधजगी
आंखों से
सुनहली
रातों में
डरता
रहा बहुत दिनों तक
उसके
नुकीले नाखूनों से
एक अंधड़
तूफान
जिसमें
उड़ता रहा
जिंदगी
भर धुल धक्क्ड़ की माफिक
जो हकीकत
में कभी आया ही नहीं
एक फूल
हमेशा
करता रहा परेशान
अपनी
ताजगी और महक से
जो खिला
ही नहीं मेरे जीवन में
कभी
संजीदगी से
एक नदी
जो मेरे
भीतर
बलखाती
हुई कभी बही नहीं
आज आमदा
है तोड़ने को
सारे
सब्रो का तटबंध
और अब
एक प्रेम
जो कभी
हुआ ही नहीं किसी से
आज बांध
की तरह खड़ा है
डूब
कर बह जाने तक
मेरे
साथ-साथ।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मेाबा0-8858229760ईमेल-puravaipatrika@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें