सोमवार, 30 जून 2014

बंघुआ मजदूर


आरसी चौहान की कविता


बंदूकों की नाल
बारूदों का बिछाया गया जाल
भय
दहशत
पैदाकर
पकड़ा दिया जाता
फावड़ा ,कुदाल
खेतों की कटाई -मंडाई
व बोझ ढोने के लिए
क्योकि -
ये बंघुआ मजदूर हैं
संविधान के नियम -अधिनियम
धारा- उपधारा के तहत
दे दिया जाता
आरक्षण
हथौड़ा व गोइता थमाकर   
बैठा दिया जाता
लोहे के गर्म के तावे
और आग उगलती चट्टानों पर
मांसपेशियां सिकुड़ जाती
दरख्तों के बलकलों सी
छोड़ दिये जाते
गण्डवानालैड की चट्टानों में
बनने के लिए कोयला
क्योंकि ये काले -कलूटे लोग हैं
जबर्दस्ती
बेरहमी से
ढकेल दिया जाता
थाली-प्लेट व गिलास थमाकर
बेरोजगारी के अखाड़े में
जूठे भात व रोटी के टुकड़ों पर
गुजर-बसर करने के लिए
जब सड़ जाती
इनकी अंतड़ियां
फिर
बंद हो जाते
दरवाजे

इन होटलों -ढाबों व रेस्तराओं के
दूसरे बाल मजदूरों पर
कहर बरसाने के लिए
खुले रहते     
नके दरवाजे
क्योंकि-
ये अशिक्षित व असभ्य हैं।