रहस्यमयी प्रेम
कथाओं वाले
मित्र
आरसी चौहान
हो सकता
कुछ चीजें लौटती नहीं जाकर वापस
पर बहुत सारी चीजें लौटती हैं
दिमाग में
जैसे- बचपन की धमाचौकड़ी
प्यार का पहला दिन, पिता का गुज़रना
और भी बहुत कुछ
बार-बार खुलती हैं स्मृति की किताबें
फड़फड़ाते हैं पन्ने
और उसमें दर्ज सारी कहानियां
अक्षरशः उग आती आंखों के सामने
और लहलहाने लगती
सपनों की फसल।
याद है जब पढ़ते थे मिडिल में
अधिकांशतः छोटे भलेमानुष
था एक लड़का प्रेम का जादूगर
दोपहर की छुटिटयों में बताता
लड़कियों के शरीर में आये उभार का रहस्य
कई-कई तरह की रहस्यमयी कथाएं
और हम विस्मित!
तो शुरू करते हैं पहली कथा से
एक था लड़का
बिल्कुल ललगड़िया बानर-सा
जो लड़को में बनरा के नाम से प्रसिद्ध
मुंह भी निपोरता वैसे ही
हम जिज्ञासावश पूछते खोद-खोद
वह बताता रस भरी बातें और कथा को
दूसरी ओर घुमाने का माहिर या यूं कहें प्यार की गाड़ी का अच्छा
ड्राइवर था वह
एक कथा से दूसरी कथा में घुसने का महारथी
महिनों तक घूमती रहती उसकी एक-एक कथा
फिर तो एक दिन उसको घेर कर हमने
सुनी एक और रस भरी दास्तान
कथा में एक थी लड़की और उसे
फंसाने की अनूठी तरकीब
अट्ठारह पोरों वाली दूब को जलाकर
उसकी भस्म अगर छिड़क दी जाए तो
खिंची चली आएगी तुम्हारे मनमाफिक
फिर मन में फूटते बुलबुले
चुनते अपने-अपने हिसाब से
क्लास की लड़कियां
और ढूंढते अट्ठारह पोरों वाली दूब
दूब भी ऐसी कि मिलती उससे
एक कम या एक अधिक पोरों वाली
महिनों तक घास में खोजते दूब और
दूब में अट्ठारह पोर
अट्ठारह पोरों की भस्म
भस्म से फंसी लड़की
लड़की का रहस्यमयी शरीर
एक अनछुआ एहसास
एक अनछुई गुदगुदी
और गर्म रगों में दौड़ती सनसनी
फिर हार-पाछ कर जाते उसकी शरण में
किसी अचूक नुस्खे की करते फरमाइश
धीरे-धीरे साल कैसे बीता
परीक्षा कैसे हुई सम्पन्न
सभी हुए कैसे पास
इसका पता ही न चला
वह आया था हम लोगों की जिन्दगी में
रहस्यों से भरा सिर्फ एक साल
आगे की पढ़ाई मे बिखरे इधर-उधर
बमुश्किल एकाध-साथी ही रह पाये साथ
पता चला वह चला गया पढ़ने बनारस
अब इन सारी चीजों से बेखबर
चलती रही पढ़ाई
मिलते रहे नये पुराने दोस्त
किसी ने पकड़ ली नौकरी
किसी ने खेती
किसी ने राजनीति की पूंछ
तो किसी ने हर गोल पाइप में तलाशना शुरू किया
कट्टा और बंदूक
मैं भी गाँव छोड़कर गया गोरखपुर
मऊ, बनारस, इलाहाबाद और
नौकरी लगते ही टिहरी
जहां एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध
जिससे निकलती है चमचमाती बिजली
एक बार फिर चमकी मेरी आंखों में
बिजली
यहां वह मिडिल में पढ़ने वाला मित्र नहीं
बल्कि मिडिल में पढ़ाने वाला मित्र मिला
जो पहाड़ों में आया था अपनी
जवानी के दिनों में
छोड़ कर दुनियां का सारा तिलिस्म
उसे नहीं मालूम थी हॉलीवुड फिल्मों की
सिने तारिकाओं की प्रेम कहानियां या
ठंडे प्रदेशों में खुलेआम
प्रेम प्रसंगों में डूबे लोगों का रहस्य
वह जब भी मिलता आग्रह करता
देखने को वैसी ही फिल्में
जिसके आगे पानी भरती थी अप्सराएं
अब हमारे उसके बीच
कोई उम्र की सीमा नहीं थी
वह था तो मेरे बाप की उमर का
लेकिन इस उम्र में फूटने लगे थे
जवानी के कल्ले,
हम युवा मित्रों के बीच
आने लगा बाल रंगाकर
जैसे कोई सांड सींग कटा कर
घुमता हो बछड़ों में
हम सबकी बातें सुनता गौर से
पैदा हुए नए सूर-कबीरों के दोहों पर
खिलखिलाता खूब और करता पैरवी
कि शामिल होने चाहिए ये दोहे
’सेक्स एजुकेशन’ की किताबों में
हम मुस्कुराते और पीटते अपना सिर
वह भरता आहें और कहता
हमने नाहक गुजार दी अपनी
जिन्दगी के अड़तालीस साल
सहलाता अपना चेहरा जैसा
बन चुका चिकना सिर
और सिर के पिछले हिस्से में
कौवे के घोंसले की तरह उलझे बालों में
फिराता अपनी अंगुलियाँ
एक दिन उसकी अनुपस्थिति में
उसकी प्रेम कहानी का हुआ यूँ लोकार्पण
कि वह आया था बीस-बाईस की उम्र में
छोड़ कर अपना भरा-पूरा परिवार
और आया तो यहीं का होकर रह गया
उसे ऐसा लगा कि यहां के लोग
हमसे जी रहे हैं सौ साल पीछे
फिर तो यहां की आबो-हवा ने पहले तो
उसका दिल जीता
नदी, पहाड झरने
सबके सब उतरते चले गये
दिल में उसके
सिर्फ उतरी नहीं थी तो एक पहाड़ी
औरत
जो उसी स्कूल में पढ़ाती थी हमउम्र
उसने किया अथक प्रयास और
फिसला तो फिसलता ही गया
पहाड़ी ढलानों पर बिछे चीड़ के पत्तों पर
ढूंगों की तरह
जहां स्वयं को भी नहीं देख पा
रहा था वह
फिर तो उसके भीतर प्रेम का पहला बीज
अंखुआने से पहले ही लरज गया
और अब महसूसता हूँ
कि इन्हीं उठापटक के बीच
चलता है जीवन
ढ़हते- ढिमलाते बनते हैं रिश्ते
और इन्हीं रिश्तों के जंगलों में
लौटता है जीवन
बसता है घर
फुदकती हैं चिड़ियाँ
और ठंडी बयार चलने लगती है एक बार फिर।
कुछ चीजें लौटती नहीं जाकर वापस
पर बहुत सारी चीजें लौटती हैं
दिमाग में
जैसे- बचपन की धमाचौकड़ी
प्यार का पहला दिन, पिता का गुज़रना
और भी बहुत कुछ
बार-बार खुलती हैं स्मृति की किताबें
फड़फड़ाते हैं पन्ने
और उसमें दर्ज सारी कहानियां
अक्षरशः उग आती आंखों के सामने
और लहलहाने लगती
सपनों की फसल।
याद है जब पढ़ते थे मिडिल में
अधिकांशतः छोटे भलेमानुष
था एक लड़का प्रेम का जादूगर
दोपहर की छुटिटयों में बताता
लड़कियों के शरीर में आये उभार का रहस्य
कई-कई तरह की रहस्यमयी कथाएं
और हम विस्मित!
तो शुरू करते हैं पहली कथा से
एक था लड़का
बिल्कुल ललगड़िया बानर-सा
जो लड़को में बनरा के नाम से प्रसिद्ध
मुंह भी निपोरता वैसे ही
हम जिज्ञासावश पूछते खोद-खोद
वह बताता रस भरी बातें और कथा को
दूसरी ओर घुमाने का माहिर या यूं कहें प्यार की गाड़ी का अच्छा
ड्राइवर था वह
एक कथा से दूसरी कथा में घुसने का महारथी
महिनों तक घूमती रहती उसकी एक-एक कथा
फिर तो एक दिन उसको घेर कर हमने
सुनी एक और रस भरी दास्तान
कथा में एक थी लड़की और उसे
फंसाने की अनूठी तरकीब
अट्ठारह पोरों वाली दूब को जलाकर
उसकी भस्म अगर छिड़क दी जाए तो
खिंची चली आएगी तुम्हारे मनमाफिक
फिर मन में फूटते बुलबुले
चुनते अपने-अपने हिसाब से
क्लास की लड़कियां
और ढूंढते अट्ठारह पोरों वाली दूब
दूब भी ऐसी कि मिलती उससे
एक कम या एक अधिक पोरों वाली
महिनों तक घास में खोजते दूब और
दूब में अट्ठारह पोर
अट्ठारह पोरों की भस्म
भस्म से फंसी लड़की
लड़की का रहस्यमयी शरीर
एक अनछुआ एहसास
एक अनछुई गुदगुदी
और गर्म रगों में दौड़ती सनसनी
फिर हार-पाछ कर जाते उसकी शरण में
किसी अचूक नुस्खे की करते फरमाइश
धीरे-धीरे साल कैसे बीता
परीक्षा कैसे हुई सम्पन्न
सभी हुए कैसे पास
इसका पता ही न चला
वह आया था हम लोगों की जिन्दगी में
रहस्यों से भरा सिर्फ एक साल
आगे की पढ़ाई मे बिखरे इधर-उधर
बमुश्किल एकाध-साथी ही रह पाये साथ
पता चला वह चला गया पढ़ने बनारस
अब इन सारी चीजों से बेखबर
चलती रही पढ़ाई
मिलते रहे नये पुराने दोस्त
किसी ने पकड़ ली नौकरी
किसी ने खेती
किसी ने राजनीति की पूंछ
तो किसी ने हर गोल पाइप में तलाशना शुरू किया
कट्टा और बंदूक
मैं भी गाँव छोड़कर गया गोरखपुर
मऊ, बनारस, इलाहाबाद और
नौकरी लगते ही टिहरी
जहां एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध
जिससे निकलती है चमचमाती बिजली
एक बार फिर चमकी मेरी आंखों में
बिजली
यहां वह मिडिल में पढ़ने वाला मित्र नहीं
बल्कि मिडिल में पढ़ाने वाला मित्र मिला
जो पहाड़ों में आया था अपनी
जवानी के दिनों में
छोड़ कर दुनियां का सारा तिलिस्म
उसे नहीं मालूम थी हॉलीवुड फिल्मों की
सिने तारिकाओं की प्रेम कहानियां या
ठंडे प्रदेशों में खुलेआम
प्रेम प्रसंगों में डूबे लोगों का रहस्य
वह जब भी मिलता आग्रह करता
देखने को वैसी ही फिल्में
जिसके आगे पानी भरती थी अप्सराएं
अब हमारे उसके बीच
कोई उम्र की सीमा नहीं थी
वह था तो मेरे बाप की उमर का
लेकिन इस उम्र में फूटने लगे थे
जवानी के कल्ले,
हम युवा मित्रों के बीच
आने लगा बाल रंगाकर
जैसे कोई सांड सींग कटा कर
घुमता हो बछड़ों में
हम सबकी बातें सुनता गौर से
पैदा हुए नए सूर-कबीरों के दोहों पर
खिलखिलाता खूब और करता पैरवी
कि शामिल होने चाहिए ये दोहे
’सेक्स एजुकेशन’ की किताबों में
हम मुस्कुराते और पीटते अपना सिर
वह भरता आहें और कहता
हमने नाहक गुजार दी अपनी
जिन्दगी के अड़तालीस साल
सहलाता अपना चेहरा जैसा
बन चुका चिकना सिर
और सिर के पिछले हिस्से में
कौवे के घोंसले की तरह उलझे बालों में
फिराता अपनी अंगुलियाँ
एक दिन उसकी अनुपस्थिति में
उसकी प्रेम कहानी का हुआ यूँ लोकार्पण
कि वह आया था बीस-बाईस की उम्र में
छोड़ कर अपना भरा-पूरा परिवार
और आया तो यहीं का होकर रह गया
उसे ऐसा लगा कि यहां के लोग
हमसे जी रहे हैं सौ साल पीछे
फिर तो यहां की आबो-हवा ने पहले तो
उसका दिल जीता
नदी, पहाड झरने
सबके सब उतरते चले गये
दिल में उसके
सिर्फ उतरी नहीं थी तो एक पहाड़ी
औरत
जो उसी स्कूल में पढ़ाती थी हमउम्र
उसने किया अथक प्रयास और
फिसला तो फिसलता ही गया
पहाड़ी ढलानों पर बिछे चीड़ के पत्तों पर
ढूंगों की तरह
जहां स्वयं को भी नहीं देख पा
रहा था वह
फिर तो उसके भीतर प्रेम का पहला बीज
अंखुआने से पहले ही लरज गया
और अब महसूसता हूँ
कि इन्हीं उठापटक के बीच
चलता है जीवन
ढ़हते- ढिमलाते बनते हैं रिश्ते
और इन्हीं रिश्तों के जंगलों में
लौटता है जीवन
बसता है घर
फुदकती हैं चिड़ियाँ
और ठंडी बयार चलने लगती है एक बार फिर।