बुधवार, 25 अप्रैल 2012
शनिवार, 25 फ़रवरी 2012
आरसी चौहान की कविता-पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
आरसी चौहान की कविता
पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
आज पहली बार
अम्लान सूर्य
हंसता हुआ
पूरब की देहरी लांघ रहा है
लडकियां हिरनियों की माफिक
कुलांचे भर बतिया रहीं
हवाओं के साथ
पतझड़ में गिरते पत्ते
रच रहे हैं
पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
हवा के बालों में
गजरे की तरह गुंथी
उड़ती चिड़ियां
पंख फैलाकर नाप रहीं आकाश
समुद्र की अठखेलियों पर
पेड़ पौधे पंचायत करने जुटे हैं
गीत गाती नदी तट पर
स्कूल से लौटे बच्चे
पेड़ों पर भूजा चबाते
खेल रहे हैं ओलापाती
युवतियां बीनी हुई
ईंधन की लकड़िया
बांध रहीं तन्मय होकर
चरकर लौटती गायें
पोखरे का पानी
पी जाना चाहतीं
एक सांस में जी भरकर
चौपाल में ढोल मज़ीरे की
एक ही थाप पर
नाच उठने वाली दिशाएं
बांध रही घुंघरू
थिरक थिरक
अब जबकी सोचता हूं
कि सपने का मनोहारी दृष्य
कब होगा सच ?
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121 मोबा0-09452228335 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
बुधवार, 25 जनवरी 2012
आरसी चौहान की कविता-कठघोड़वा नाच
आरसी चौहान की कविता
आरसी चौहान
कठघोड़वा नाच
रंग- बिरंगे कपड़ों में ढका कठघोड़वा
घूमता था गोल- गोल
गोलाई में फैल जाती थी भीड़
ठुमकता था टप-टप
डर जाते थे बच्चे
घुमाता था मूड़ी
मैदान साफ होने लगता उधर
बैण्ड बाजे की तेज आवाज पर
कूदता था उतना ही ऊपर
और धीमे,पर ठुमकता टप-टप
जब थक जाता
घूमने लगता फिर गोल-गोल
बच्चे जान गये थे
काठ के भीतर नाचते आदमी को
देख लिए थे उसके घुंघरू बंधे पैर
किसी-किसी ने तो
घोड़े की पूंछ ही पकड़कर
खींच दी थी
वह बचा था
लड़खड़ाते-लड़खड़ाते गिरने से
वह चाहता था
कठघोड़वा से निकलकर सुस्ताना
कि वह जानवर नहीं है
लोग मानने को तैयार नहीं थे
कि वह घोड़ा नहीं है
बैंड बाजे की अन्तिम थापपर
थककर गिरा था
कठघोड़वा उसी लय में धरती पर
लोग पीटते रहे तालियां बेसुध होकर
उसके कंधे पर
कठघोड़वा के कटे निशान
आज भी हरे हैं
जबकि कठघोड़वा नाच और वह
गुमनामी के दौर से
गुजर रहें हैं इन दिनों ।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-09452228335
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com
मंगलवार, 6 दिसंबर 2011
आरसी चौहान की कविता-नथुनिया फुआ
आरसी चौहान
नथुनिया फुआ
ठेठ भोजपुरी की बुनावट में
संवाद करता
घड़रोज की तरह कूदता
पूरे पृथ्वी को मंच बना
गोंडऊ नाच का नायक-
“नथुनिया फुआ”
कब लरझू भाई से
नथुनिया फुआ बना
हमें भी मालूम नहीं भाई !
हां , वह अपने अकाट्य तर्कों के
चाकू से चीड़ फाड़कर
कब उतरा हमारे मन में
हुडके के थाप और
भभकते ढीबरी के लय-ताल पर
कि पूछो मत रे भाई !
उसने नहीं छोड़ा अपने गीतों में
किसी सेठ-साहूकार
राजा-परजा का काला अध्याय
जो डूबे रहे मांस के बाजार में आकंठ
और ओढे रहे आडंबर का
झक्क सफेद लिबास
माना कि उसने नहीं दी प्रस्तुती
थियेटर में कभी
न रहा कभी पुरस्कारों की
फेहरिस्त में शामिल
चाहता तो जुगाड़ लगाकर
बिता सकता था
बाल बच्चों सहित
राज प्रसादों में अपनी जिंदगी के
आखिरी दिन पर ठहरा वह निपट गंवार
गंवार नहीं तो और क्या कहूं उसको
लेकिन वाह रे नथुनिया फुआ
जब तक रहे तुम जीवित
कभी झुके नहीं हुक्मरानों के आगे
और भरते रहे सांस
गोंडऊ नाच के फेफडों में अनवरत
जबकि.....
आज तुम्हारे देखे नाच के कई दर्शक
जबकि.....
आज तुम्हारे देखे नाच के कई दर्शक
ऊँचे ओहदे पर पहुंचने के बाद
झुका लेते हैं सिर
और हो जाते शर्मशार ..................।
और हो जाते शर्मशार ..................।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-09452228335
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com
शुक्रवार, 11 नवंबर 2011
आरसी चौहान की कविता-दस्ताने
यह चित्र गूगल से साभार
दस्ताने
यहां बर्फीले रेगिस्तान में
किसी का गिरा है दस्ताना
हो सकता है इस दस्ताने में
कटा हाथ हो किसी का
सरहद पर अपने देश की खातिर
किसी जवान ने दी हो कुर्बानी
या यह भी हो सकता है
यह दस्ताना न हो
हाथ ही फूलकर दीखता हो
दस्ताने-सा
जो भी हो
यह लिख रहा है
अपनी धरती मां को
अंतिम सलाम
या पत्नी को खत
घर जल्दी आने के बारे में
या बहन से
राखी बंधवाने का आश्वासन
या मां-बाप को
कि इस बार करवानी है ठीक मां की
मोतियाबिंद वाली आंखें
और पिता की पुरानी खांसी का
इलाज जो भी हो
सरकारी दस्तावेजों में गुम
ऐसे न जाने कितने दस्ताने
बर्फीले रेगिस्तान में पडे.
खोज रहे हैं
आशा की नई धूप ।
यह चित्र गूगल से साभार
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
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