बहुरूपिया
वह अकेला था
या कई लोगों का
मिला जुला रूप था अकेले
उसने क्या क्या नहीं किया
पेट खातिर
कभी हनुमान कभी शिव
कभी हिजड़ा और कभी नचनिया
की भूमिका में
जब कभी बना हनुमान
बच्चे पूंछ पकड़ खींचते
मुंह निपोरता बानरों सा
बच्चे चिचियाकर भागते बहुत दूर
और गरियाते,अरे साला !
ई आदमी है कि बानर रे !
हे हनुमान जी माफ करना
गलती हो गयी
हनुमान जी हंसते
पूंछ से देते आशीर्वाद
जब कभी बनता नचनिया
बच्चे खुश हो
खूब करते लिहो- लिहो
उसके बनावटी स्तनों पर करते बवाल
कितने ही भूल जाते अपनी पत्नियां
घूमते आगे-पीछे
और मौका मिलते ही
नहीं चूकते अपना दांव
वह रह जाता जी ममोस कर
एक बार तो हद ही हो गयी
जब बना था हिजड़ा
बच्चे जानने को उत्सुक
इसका होता कैसा चिह्न
उठा दिये थे घाघरा ही ऊपर तक
शरमा कर रह गया वह
उसने सोचा इससे बेहतर
मर जाना ही ठीक
उसे क्या मालूम यह सोच ही
सच होने जा रही
उसे अंतिम बार देखा
जब बना था शिव
गले में लटकाए जहरीला सांप
हो भाई ! सांप भी ऐसा कि
फुफकारे तो सूख जाए कलेजा
और क्या बताएं हो भाई !
अचानक जब गिरा था जमीन पर
लोग पीटते रहे ताकलयां बेसुध
अब जबकि
सजाई जाने लगी अर्थी
लोग देखते रहे
उसकी मृत देह में एक अदंभी
कलाकार के हूनर का तिलिस्म
उसकी शव यात्रा में शामिल लोग
मानने को तैयार न थे
कि उसकी कला
का अंतिम एपीसोड था यह
जबकि छोड़ चुका था वह
अपनी बीवी के कंधों पर
जवान होती दो बेटियां।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरीगढ़वाल उत्तराखण्ड249121मोबा0-09452228335 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
बेहतरीन भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंword varification hata den
जवाब देंहटाएंhttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
जवाब देंहटाएंवाह ... गज़ब के भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंओह बेहद भावप्रवण और मार्मिक
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