आरसी चौहान
(पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक लोकप्रिय खेल जो अब लुप्त हो चला है )
एक खेल जिसके नाम से
फैलती थी सनसनी शरीर में
और खेलने से होता
गुदगुदी सा चक्कर
जी हां
यही न खेल था घुमरी परैया
कहां गये वे खेलाने वाले घुमरी परैया
और वे खेलने वाले बच्चे
जो अघाते नहीं थे घंटों दोनों
यूं ही दो दिलों को जोड़ने की
नयी तरकीब तो नहीं थी घुमरी परैया
या कोई स्वप्न
जिसमें उतरते थे
घुमरी परैया के खिलाड़ी
और शुरू होता था
घुमरी परैया का खेल
जिसमें बाहें पकड़कर
खेलाते थे बड़े बुजुर्ग
और बच्चे कि ऐसे
चहचहाते चिड़ियों के माफिक
फरफराते उनके कपड़े
पंखों से बेजोड़
कभी-कभी चीखते थे जोर-जोर
उई----- माँ----
कैसे घूम रही है धरती
कुम्हार के चाक.सी
और सम्भवतः
शुरू हुई होगी यहीं से
पृथ्वी घूमने की कहानी
लेकिन
कहां ओझल हो गया घुमरी परैया
जैसे ओझल हो गया है
रेडियो से झुमरी तलैया
और अब ये कि
हमारे खेलों को नहीं चाहिए विज्ञापन
न होर्डिगों की चकाचौंध
अब नहीं खेलाता कोई किसी को
घुमरी परैया
न आता है किसी को चक्कर ।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-09452228335
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com
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