आरसी चौहान
अबकि बार जब गांव गया था
बहुत दिनों बाद जाना हुआ था
अबकि बार गांव
जहां सड़कों ने ओढ़ ली थी
कोलतारी या सीमेंटी चादरें
और गांव में खड़े हो गये थे
विकास के
बड़े-बड़े पत्थर
गांव के ठीक बीचोबीच
मखमली घास से
ढका रहने वाला रामलीला मैदान
मखमली घास से
ढका रहने वाला रामलीला मैदान
मनो हो गया हो
गुमशुदा तलाश केन्द्र में दर्ज
गुमशुदा तलाश केन्द्र में दर्ज
जहां हमारे दादा-परदादा के जमाने से
लगता आ रहा है मेला दशहरा का
बहुत
जिद्द करने पर
लिया जाती दादी घुमाने मेला
हर एक दुकानदारों की नस-नस
पहचानती थी दादी
कि कौन काटता है बटुए
कौन करता है घटतौली
और कौन बेचता है घसिटुआ समान
इन सबके बावजूद
मल्लू हलुवाई की दुकान से
जलेबियां लेना भूलती नहीं दादी
ऐसे आते-जाते घुल मिल गये दुकानदारों
से
कई सालों तक चलता रहा सिलसिला
धीरे - धीरे समझ आने लगा दशहरा के मायने
धीरे - धीरे समझ आने लगा दशहरा के मायने
कि अपने भूले विसरों से मिलने
व
सुखों दुखों को बांटने का
सबसे बड़ा मंच है मेला
इसी मेले में जाना हमने
अलगू कोंहार
झींगुरी बढ़ई
मल्लू
हलुवाई
परचून वाला खुरचन
गुब्बारे
वाला सदलू
ओर झींगन नट
समय के साथ बदलता रहा मेला
बदलते
रहे लोग
गांव में घुसता गया शहर
और शहर में विलाता गया गांव
और
रामलीला मैदान से सटा पोखर भी
कहां रहा पहले जैसा
धीरे -
धीरे छूटता गया गांव
छूटता गया मेला
और
छूटते गये नये पुराने लोग
कभी - कभार कर लेते मेले को याद
जैसे
यादों में ही लगता है मेला
हां! इस बार जाना हुआ
अपने
बच्चों साथ मेला
जहां नहीं दीखे पुराने दुकानदार
खुरचन ने जरूर लगायी थी
परचून की दुकान
मेले में कहीं भी नहीं दिखा अलगू कोंहार
जिसके मिट्टी के बनाए खिलौने
पिछले कई वर्षों तक तो
खरीद ही लिया करते थे
हाथी, घोड़े, हिरन, कुक्कुर या
कभी मोर, बिल्ली और तोता
अरे
हां!
झींगुरी बढ़ई भी नहीं दिखा
काठ की बनायी बाड़ी डमरू और
मोटरगाड़ी के साथ
वह भीड़ में जरूर देख रहा था असहाय
जलता हुआ रावण!
पता चला गुब्बारे वाला सदलू
चल बसा
इस दुनिया से
और कई साल पहले झींगन
नट तो
अपना झंड कमण्डल ही फेंककर
चला
गया कमाने सूरत
कहां देखते अब लोग
उसका कोई करतब
समय के साथ उखड़ता गया मेला
उखड़ते गये लोग
बनती गयी इमारतें
सिमटता गया
बुढ़ाती चमड़ी की तरह
रामलीला मैदान
और हां,जरूर कभी-कभी
और हां,जरूर कभी-कभी
सियार की तरह हुंआ-हुंआ करता है गांव
या
किसी खरहा की तरह
हांफता है रामलीला मैदान
जबसे बाजार ने धंसा दिया है अपना पंजा
गांव की छाती में
शिकारी शेर की तरह ।
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
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