अकुलाया हाथ है पृथ्वी
का
उसके कंधे पर
अकुलाया हाथ है पृथ्वी का
एक अनाम सी नदी
बहती है सपने में
आंखों में लहलहाती है
खुशियों की फसल
मन हिरन की तरह भरता है कुलांचे
बाजार बाघ की तरह
बैठा है फिराक में
बहेलिया
फैला रखा है विज्ञापनों का जाल
और एक भूखे कुनबे का झुण्ड
टूट पड़ा है
उनके चमकिले शब्दों के दानों पर
पृथ्वी सहला रही है
अपने से भी भारी
उसके धैर्य को
धैर्य का नाम है किसान।
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें