खूबसूरत धरती के बारे
में
वे लिख रहे हैं सदियों
से
और नहीं लिख पा रहे
हैं
आदमी को आदमी
वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही
हैं रेत
वे पहाड़ों के बारे
में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे
में भी
कि
देखते ही देखते बदल
जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़
पृथ्वी को लिखना चाहते
हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा
रही है
बच्चे जिनपर अभी तक
लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह
मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते
कूदते
खरगोश के बालों की
तरह मुलायम
बताया गया है
यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने
वाली सरहदों को भी
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये
अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या
द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह
उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से
बतियाना चाहते हैं
इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता
हुआ
और पृथ्वी को लिखा
है जननी
हम इनके भूगोल को कब
समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन
एक
खूबसूरत धरती के बारे
में ?
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