गुरुवार, 20 मार्च 2014

बहुत कुछ :आरसी चौहान




 








बहुत कुछ............... 


सुना है
हवा को  
दमें की बीमारी लग गयी है
चारपायी पर पड़ी
कराह रही है 
औद्योगिक अस्पताल में
कुछ दिन पहले
कई तारे एड्स से मारे गये
अपना सूर्य भी
उसकी परिधि से  बाहर नहीं है
अपने चांद को कैंसर हो गया है
उसकी मौत के 
गिने चुने दिन ही बचे है   
आकाश को 
कभी-कभी पागलपन का  
दौरा पड़ने लगा है
पहाड़ों को लकवा मार गया है
खड़े होने के प्रयास में
वह ढह-ढिमला रहे हैं
यदा- कदा 
नदि़यां रक्तताल्पता की
गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं
इन नदियों के बच्चे
सूखाग्रस्त इलाकों में 
दम तोड़ रहे हैं
पेड़ की टांगो  पर
आदमी की नाचती कुल्हाड़ियां
बयान कर रही हैं 
बहुत कुछ।



संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) 
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121 
 मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

आरसी चौहान की कविता :ढाई अक्षर




 










ढाई अक्षर

तुम्हारी हंसी के ग्लोब पर  
लिपटी नशीली हवा से  
जान जाता हूं  
कि तुम हो  तो   
समझ जाता हूं  
कि मैं भी   
अभी जीवित हूं  
ढाई अक्षर के खोल में।




संपर्क-        आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)

                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल

                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com
 

शनिवार, 25 जनवरी 2014

आरसी चौहान की कविता :आदमी


















पहला  

जुलूस में मारा गया 
  
वह आदमी नहीं था 

दूसरा  

आमरण अनशन में मारा गया 
   
वह भी आदमी नहीं था 

तीसरा भाषण देते सफेदपोश 

मारा गया  
   
वह आदमी था।

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
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                 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

सच्चाई




उसने कहा-  
तुम भविष्य के हथियार हो  
बात तब समझ में आयी  
जब  
मिसाइल की तरह  
जल उठा मैं

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
                 उत्तराखण्ड 249121
                 मेाबा0-8858229760
                 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com

शनिवार, 23 नवंबर 2013

घुमरी परैया


                                                   आरसी चौहान

(पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक लोकप्रिय खेल जो अब लुप्त हो चला है ) 
  
एक खेल जिसके नाम से  
फैलती थी सनसनी शरीर में  
और खेलने से होता
गुदगुदी सा चक्कर     
जी हां 
यही खेल था घुमरी परैया 
कहां गये वे खेलाने वाले घुमरी परैया  
और वे खेलने वाले बच्चे 
जो अघाते नहीं थे घंटों दोनों  
यूं ही दो दिलों को जोड़ने की 
नयी तरकीब तो नहीं थी घुमरी परैया  
या कोई स्वप्न  
जिसमें उतरते थे 
घुमरी परैया के खिलाड़ी
और शुरू होता था
घुमरी परैया का खेल 
जिसमें बाहें पकड़कर  
खेलाते थे बड़े बुजुर्ग  
और बच्चे कि ऐसे
चहचहाते चिड़ियों के माफिक 
फरफराते उनके कपड़े  
पंखों से बेजोड़  
कभी-कभी चीखते थे जोर-जोर   
उई----- माँ----  
कैसे घूम रही है धरती  
कुम्हार के चाक.सी 
और सम्भवतः 
शुरू हुई होगी यहीं से 
पृथ्वी घूमने की कहानी 
लेकिन   
कहां ओझल हो गया घुमरी परैया  
जैसे ओझल हो गया है 
रेडियो से झुमरी तलैया 
और अब ये कि  हमारे खेलों को नहीं चाहिए विज्ञापन 
होर्डिगों की चकाचौंध 
अब नहीं खेलाता कोई किसी को 
घुमरी परैया  
न आता है किसी को चक्कर    । 

संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
                 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
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