गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

आरसी चौहान की कविता : जूता




 









आरसी चौहान


जूता




लिखा जाएगा जब भी 

जूता का इतिहास

सम्भवतः,उसमें शामिल होगा

और कीचड़ में सना पांव 
  
बता पाना मुश्किल होगा           
                                                    
हो सकता किसी ने 

रखा हो कीचड़ में पांव 

और कीचड़ सूख कर 

 बन गया हो जूता सा
   
 फिर देखा हो किसी ने कि
  
 बनाया जा सकता है 

 पांव ढकने का एक पात्र 

 फिर बन पड़ा हो जूता

और तबसे उसकी मांग 


सामाजिक हलकों से लेकर

राजनैतिक सूबे तक में
  
 बनी हुई है लगातार


 घर के चौखट से लेकर 


युद्ध के मैदान तक

सुनी जा सकती है
  
 उसकी चौकस आवाज


 फिर तो उसके ऊपर गढे़ गये मुहावरे

लिखी गयी ढेर सारी कहानियां

और इब्नबतूता पहन के जूता
  
 भी कम चर्चा में नहीं रही कविता 

 कितने देशों की यात्राओं में
  
 शामिल रहा है ये 

 शुभ काम से लेकर

अशुभ कार्यो तक में 

 विगुल बजाता उठ खड़ा होता रहा है यह

और अब ये कि

वर्षों से पैरों तले दबी पीड़ा

दर्ज कराते ये

जनता के तने हुए हाथों में 

तानाशाहों के थोबड़ों पर
 

 अपनी भाषा,बोली और लिपि में 


  भन्नाते हुए......









संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121 
 मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com