सोमवार, 14 जुलाई 2014

पगडंडियां-


आरसी चौहान की कविता


पगडंडिया कभी भी
पंचायत नहीं की
चौराहों के विरूद्ध
न ही धरना प्रर्दश ही किया
विधान सभा या
संसद भवन के आगे
जब भी चले बुलडोजर
केवल पगडंडियां
ही नहीं टूटी
टूटे हैं पहाड़
रकी हैं चट्टानें
और टूटे हैं किसी के
हजारों हजार सपने
जब तक खड़े हैं पहाड़
जीवित रहेंगी पगडंडियां
पगडंडियों का न होना
पहाड़ों का खत्म होना है ।