धरती से संवाद करते हुए
वह आंखों से नापता है
आसमान की दूरी
सीपियों के मुंह सा खुले
धरती के अकुलाये हराई में
स्वाती बूंदों सा
डालता है एक एक बीज
धरती को और चाकलेटी बनाते हुए
महसूसता है बीजों के अंखुआने की
कुलबुलाहट
अपने पसीने की बूंदों का
बादलों में बदलते हुए
देखता है खुशियों का इंद्रधनुष
जहां भूख ने आत्म समर्पण कर लिया है
और एक झण्डा
लहराने लगा है श्रम का।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड 249121
मेाबा0-8858229760
ईमेल-puravaipatrika@gmail.com