सोमवार, 16 सितंबर 2013

आदमखोर समय में


आरसी चौहान



इधर जब भी
लिखने चला हूँ कविता
कलम हँसी है ठठाकर
मेरी बेवकूफी पर
जल रही है जब सारी दुनिया
लिखने चले हैं कविता
कुछ देश दूसरे देशों का
नोच लेना चाहते हैं चेहरा
कुछ समुद्र दूसरे समुद्रों में
गड्ड-मड्ड होकर
लील लेना चाहते हैं द्वीप
और आदमी है कि पढ़े
जा रहा है कविता
लिखे जा रहा है कविता
खोज रहा है कविता में नया हथियार
जिसमें न दिखे दूर तलक
पुराने हथियार
सिर्फ की बोर्ड पर टंके अक्षरों की तरह
दबाया जा सके
कविता का कोई भी अक्षर या शब्द
और आदमी खड़ा हो जाये
आदमी के विरूद्ध
काट सके आदमी
आदमी को
जैसे-काटता है लोहे को लोहा
और अब ये कि सारी कल्पनाओं से परे
आदमखोर बाघों-से समय में
हरी घास में हिरन के शावक-सा
बच के निकल आती ही है कविता
अपने हाथों में 
जलती मशालें लिए हुए।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

फूल बेचती लड़की

 


फूल बेचती लड़की
पता नहीं कब फूल की तरह
खिल गयी
फूल खरीदने वाले
अब उसे दोहरी नजर से देखते हैं
और पूछते हैं
बहुत देर तक
हर फूल की विशेषता
महसूसते हैं
उसके भीतर तक
सभी फूलों की खूबसूरती
सभी फूलों की महक
सभी फूलों की कोमलता
सिर से पाँव तक
उसके एक. एक अंग की
एक .एक फूल से करते हैं मिलान
अब तो कुछ लोग
उससे कभी.कभी
पूरे फूल की कीमत पूछ लेते हैं
देह की भाषा में
जबकि उसके उदास चेहरे में
किसी फूल के मुरझाने की कल्पना कर
निकालते हैं कई.कई अर्थ
और उसे फूलों की रानी
बनाने की करते हैं घोषणाएं
काश! वो श्रम को श्रम ही रहने देते।

संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-09452228335
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com

सोमवार, 29 जुलाई 2013

बंधुआ मुक्त हुआ कोई



















बंधुआ मुक्त हुआ कोई

किसान के जहन से
अब दफन हो चुकी है
अतीत की कब्र में
दो बैलों की जोड़ी
वह भोर ही उठता है
नांद में सानी-पानी की जगह
अपने ट्रैक्टर में नाप कर डालता है
तेल
धुल-पोंछ कर दिखाता है अगरबत्ती
ठोक-ठठाकर देखता है टायरों में
अपने बैलों के खुर
हैंडिल में सींग
उसके हेडलाइट में
आँख गडा़कर झांकता
बहुत देर तक
जो धीरे-धीरे पूरे बैल की आकृति मे
बदल रहा है
समय-
खेत जोतते ट्रैक्टर के पीछे-पीछे
दौड़ रहा है
कठोर से कठोर परतें टूट रही हैं
सोंधी महक उठी है मिट्टी में
जैसे कहीं
एक बधुंआ मुक्त
हुआ हो कोई।


संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) 
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121          मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

रविवार, 30 जून 2013

पहाड़

                      आरसी चौहान

पहाड़

हम ऐसे ही थोडे बने हैं पहाड़
हमने जाने कितने हिमयुग देखे
कितने ज्वालामुखी
और कितने झेले भूकम्
जाने कितने-कितने
युगों चरणों से
गुजरे हैं हमारे पुरखे
हमारे कई पुरखे
अरावली की तरह
पड़े हैं मरणासन्न तो
उनकी संतानें
हिमालय की तरह खड़ी हैं
हाथ में विश्व की सबसे ऊँची
चोटी का झण्डा उठाये।

बारिश के बाद      
नहाये हुए बच्चों की तरह
लगने वाले पहाड़
खून पसीना एक कर
बहाये हैं निर्मल पवित्र नदियाँ
जिनकी कल-कल ध्वनि
की सुर ताल से
झंकृत है भू-लोक, स्वर्ग
एक साथ।

अब सोचता हूँ
अपने पुरखों के अतीत
अपने वर्तमान की
किसी छोटी चूक को कि
कहाँ विला गये हैं
सितारों की तरह दिखने वाले
पहाड़ी गाँव
जिनकी ढहती इमारतों
खण्डहरों में बाजार
अपना नुकीला पंजा धंसाए
इतरा रहा है शहर में
और इधर पहाड़ी गाँवों के
खून की लकीर
कोमल घास में
फैल रही है लगातार



संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121         मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

शुक्रवार, 17 मई 2013

पृथ्वी को रोटी बनते हुए







पृथ्वी को रोटी बनते हुए

आपको कौन कहता है
गरीबों पर लिखने के लिए कविता
कभी उनकी हल के फाल बनकर
तो कभी फावड़े की धार बनकर
लूटना चाहते हो वाहवाही
उन्हें मालूम है
उन पर लिखी कविताएं बटोरती हैं शोहरत
लिखने वाला और भी
बटोरता है पुरस्कारों पर पुरस्कार
इससे भद्दा मजाक
और क्या हो सकता है उनसे
कि उनके पसीने की गंध पर
खिलती है पुरी दुनिया
चहकता है जीवन
और वह
सपने में देखता है
पृथ्वी को रोटी बनते हुए।




संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) 
 राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121         मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com