मंगलवार, 19 अप्रैल 2016
गुरुवार, 31 मार्च 2016
सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
मेरी पहली कविता : रैदास की कठौत - आरसी चौहान
आज हम जिस दौर से गुजर
रहे हैं शायद आजाद भारत में ऐसा षडयंत्र कभी नहीं रचा गया होगा जिसमें जनता की चीखों
को बड़े शातिराना तरीके से दबाया जा रहा हो और हमारे हुक्मरान धृतराष्ट्र की मुद्रा में
विराजमान हों। जहां रोहित बेमिला एवं कन्हैया जैसे उदाहरण एक बानगी भर है। एक कविता
जो पन्द्रह वर्ष पहले लिखा था जो कहीं भी प्रकाशित होने वाली संभवत: मेरी पहली कविता है। अखबार
था वाराणसी से प्रकाशित होने वाला ‘ गांडीव ’ और
साल था 2001 जिसकी प्रासंगिकता
आज भी उतनी ही है जितनी तब भी थी । केवल चेहरे बदल रहे हैं सिंहासन पर, आम आदमी वहीं
का वहीं है।
अगली पोस्ट जल्द ही
जो वागर्थ के फरवरी 2016
अंक
में प्रकाशित मेरी तीन कविताओं पर होगी। फिलहाल प्रस्तुत है रैदास जयंती पर मेरी पहली कविता।
रैदास की कठौत
रख
चुके हो कदम
सहस्त्राब्दि
के दहलीज पर
टेकुरी
और धागा लेकर
उलझे
रहे
मकड़जाल
के धागे में
और
बुनते रहे
अपनी
सांसों की मलीन चादर
इस
आशा के साथ
कि
आएगी गंगा
इस
कठौत में
नहीं
बन सकते रैदास
पर
बन सकते हो हिटलर
और
तुम्हारे टेकुरी की चिनगारी
जला
सकती है
उनकी
जड़
जिसने
रौंदा कितने बेबस और
मजलूमों
को।
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
रविवार, 31 जनवरी 2016
अरमान-आरसी चौहान
अरमान
आंख
मुलमुलाते बदसूरत बच्चों के
खिलखिलाने
से
जान
सकते हैं
उनकी
मांओं की
सारी
अनिवर्चनीय घटनाएं
जो पीठ
पर बंधी
गठरी
में
पड़े
रहते हैं
परिचय
पत्र की तरह
पहने रहतीं
पेवन सटी कनातें
भय
दहशत
पैदा
कर
जबर्दस्ती
रख दिया
जाता
सिर
पर गेरूड़ी-सा मुकुट
एक संस्कार
के तहत
जिनका
नहीं होता जिक्र
इतिहास
के पन्नों में
किन्हीं
रानियों या राजकुमारियों
की तरह
सीख
लेती सजाना
कौड़ी
के लिए
ईंटों
को
गेरूड़ी
पर
परतदार
चट्टानों की तरह
तपती
रहतीं
चीलचीलाती
धूप में
गर्म
तावे पर
तले
हुए पापड़ की तरह
जो
सूरज
सरकने के साथ ही
चली
जातीं अपने गन्तव्य
रात
की गोंद में
सोखते
रहते
इनके
प्रतिरोधी झंवाए भासुर चेहरे
पर्त
दर पर्त गंदुनुमें स्याह रोशनाई को
बिखर
जाते
इनके
अरमान
उपल
चिंदीयों और
झंझावात
में आए
तूफानी
झोंको से
उजड़े
हुए छप्परों व
भिहिलाए
दरख्तों की तरह।
प्रकाशन-युनाईटेड भारत
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.comमंगलवार, 29 दिसंबर 2015
सोमवार, 23 नवंबर 2015
आज सोचता हूं : आरसी चौहान
आज सोचता हूं
अमरूद किसे अच्छा नहीं लगता खाना
मां बताती थी
अमरूद के एक बीज में
होता है नौ घड़ा पानी
खाओ तो सम्भलकर
नहीं तो खांसी में खाया तो
मुआ डालेगा खंसा खंसा
तब हंसता था मैं बेसुरा
आज सोचता हूं
कि मां बड़ी या विज्ञान ?
संपर्क -
आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख,
टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760
ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख,
टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760
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शनिवार, 31 अक्टूबर 2015
कलम : आरसी चौहान
आरसी चौहान
कलम
पंखों की उर्वर जमीन पर उगे कलम
तुम्हें मालूम है अपने पूर्वजों के कटे पंख
जिसने कर दिया कितनों को अजर- अमर
और नरकट तुम
बने रहे
नरकट के नरकट !
तुम्हारी नोंक को तलवार की माफिक
बनाया गया धारदार
तुम्हारे मुंह से उगलवाया गया
मोतियों के माफिक शब्द
मंचों से वाहवाही बटोरते रहे
लेखकगण
और बदले में तुम्हारी जीभ को
काटते रहे बार- बार
फिर भी तुम बने रहे निर्विकार
नरकट
तुम्हारे भाई बंधु
किरकिच और सरकण्डे
लुप्तप्राय हो गये हैं और
आज तुम्हारी हड्डियों की कलम
तो सपने में भी नहीं दीखती
तुम्हारी शक्ल - सूरत से बेहतर
कारखानों में बनते रहे
तुम्हारे विकल्प
कीबोर्ड और कम्प्यूटर तो भरने लगे उड़ान
और बेदखल होते रहे तुम
तो क्या हुआ \
जादुई
मुस्कान
घोलते
हुए बोला नरकट
अब
तुम नहीं बर्गला सकते हमें
हैं
तो हमारे ही भाई बंधु
जो हमारे सपनों
की उर्वर भूमि पर
अंगुलियों को अपने इशारों पर
नचाते हुए
उठ खड़े हुए हैं ये
जिनके पदचापों की अनुगूंज
सुनी जा सकती है
समूचे विश्व में।
प्रकाशन-गाथान्तर ,संकेत
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
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