मंगलवार, 30 अगस्त 2016

समय : आरसी चौहान



समय

जब समय ठीक नहीं है तो
भूख में
सामने रखी भूनी मछली भी
पानी में कूद जाती है।
 



 संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

बुधवार, 27 जुलाई 2016

पीसीओ वाले अंकल जी : आरसी चौहान





मजदूर क्या होते हैं ?
उनकी विवाई कहां फटती है ?
उनसे अधिक कोई
क्या बता सकता है ?

कभी मजदूरों में
रीढ़ की हड्डी रहे वे
जब निकाले गये काम से
टूटे हुए बाल की तरह
उलझ कर उलझते चले गये
राजनीति के कंघे में

नहीं आया काम
मजदूर संगठनों का मरहम
भागम दौड़ की जद्दोजहद में
हार पाछकर लौट आये घर
परिवार में छा गया घुप्प अन्हार
और गांव में पसर गयी
अन्हार की छाया

हार नहीं मानी उन्होंने
आशा के सहारे
हिम्मत के चबूतरे पर
खोल ली एक गुमटी में
पी सी ओ

गांव में दस मुंह दस बातें
सबकी सुनकर
बेखबर रहे वे
समय की पीठ पर सवार
चल निकला उनका  पी सी ओ
सुबह से शाम तक
हाय, हैलो में डूबे रहते वे


फिर तो
धीरे धीरे चेहरा पढ़ने का अनुभव
हासिल कर लिया उन्होंने
किसी चेहरे की मुस्कान
और बुझे चेहरे की थकान से
निकाल लेते कई कई अर्थ
मसलन जवान होती लड़की की
मुस्कान की लम्बाई से
अनुमान लगाते उसके रहस्यमयी प्रेम की
जिसकी पंखुड़ियां अभी खुली नहीं थी
ठहाके से
उसके बेशर्मीपन की
और रोने पर देखते
उसके भावनाओं के समन्दर में
डूबता उतराता सपना

सांय सांय बतियाने पर लगाते
किसी अनहोनी घटना का अनुमान
बात करते- करते फफक कर रोने पर
लगाते अंदाज उसके साथ हुई किसी
जोर जबरदस्ती की

और अब जब पूरे अरियात करियात में
ओझल होते पी सी ओ बूथों के बीच
किसी अनोखी घटना से
कम नहीं था
उनका पी सी ओ

कि एक दिन लोगों का हुजूम
बढ़ रहा था उनकी शव यात्रा में
विदा करने उन्हें सधन्यवाद

और अब ये कि
यहां कोई किसी को नहीं बुलाता
दो दिलों को जोड़ने वाले
आने पर कोई फोन
न उठाना चाहता है कोई जहमत
मोबाइल पर बतियाते हुए


संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com
 

शुक्रवार, 17 जून 2016

अकुलाया हाथ है पृथ्वी का : आरसी चौहान





अकुलाया हाथ है पृथ्वी का

उसके कंधे पर
अकुलाया हाथ है पृथ्वी का

एक अनाम सी नदी
बहती है सपने में
आंखों में लहलहाती है
खुशियों की फसल
मन हिरन की तरह भरता है कुलांचे

बाजार बाघ की तरह
बैठा है फिराक में
बहेलिया
फैला रखा है विज्ञापनों का जाल

और एक भूखे कुनबे का झुण्ड
टूट पड़ा है
उनके चमकिले शब्दों के दानों पर

पृथ्वी सहला रही है
अपने से भी भारी
उसके धैर्य को
धैर्य का नाम है किसान।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

सोमवार, 30 मई 2016

स्त्री : आरसी चौहान




 

स्त्री

सभी जीवों में श्रेष्ठ मानव
मानवों में श्रेष्ठ स्त्री
को देखकर
दूर से ही साष्टांग की मुद्रा में
माचिस ने कहा
नमस्ते दीदी
स्त्री बोली
अरे तुम कबसे बोलने लगी
माचिस ने कहा
दीदी जबसे तुम भी मेरी तरह
जलने लगी।






संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

नदियां :आरसी चौहान





आरसी चौहान की कविता 

 नदियां 

नदियां पवित्र धागा हैं
पृथ्वी पर
जो बंधी हैं
सभ्यताओं की कलाई पर
रक्षासूत्र की तरह
इनका सूख जाना
किसी सभ्यता का मर जाना है।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

गुरुवार, 31 मार्च 2016

समय बांच रहा है : आरसी चौहान



समय बांच रहा है

समय बांच रहा है
आदिम काल से अद्यतन काल तक
का सारा चिट्ठा
इंसानों के बेपनाह मुहब्बत
फलों में बदल गये हैं
और उनके दुख काटों में।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

मेरी पहली कविता : रैदास की कठौत - आरसी चौहान




     आज हम  जिस दौर से गुजर रहे हैं शायद आजाद भारत में ऐसा षडयंत्र कभी नहीं रचा गया होगा जिसमें जनता की चीखों को बड़े शातिराना तरीके से दबाया जा रहा हो और हमारे हुक्मरान  धृतराष्ट्र की मुद्रा में विराजमान हों। जहां रोहित बेमिला एवं कन्हैया जैसे उदाहरण एक बानगी भर है। एक कविता जो पन्द्रह वर्ष पहले लिखा था जो कहीं भी प्रकाशित होने वाली संभवत: मेरी पहली कविता है। अखबार था वाराणसी से प्रकाशित होने वाला  ‘ गांडीव ’ और साल था 2001 जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी तब भी थी । केवल चेहरे बदल रहे हैं सिंहासन पर, आम आदमी वहीं का वहीं है।
 अगली पोस्ट जल्द ही जो वागर्थ के फरवरी 2016 अंक में  प्रकाशित मेरी तीन कविताओं पर होगी। फिलहाल प्रस्तुत है रैदास जयंती पर  मेरी पहली कविता। 
रैदास की कठौत


रख चुके हो कदम

सहस्त्राब्दि के दहलीज पर

टेकुरी और धागा लेकर

उलझे रहे

मकड़जाल के धागे में

और बुनते रहे

अपनी सांसों की मलीन चादर

इस आशा के साथ

कि आएगी गंगा

इस कठौत में

नहीं बन सकते रैदास

पर बन सकते हो हिटलर

और तुम्हारे टेकुरी की चिनगारी

जला सकती है

उनकी जड़

जिसने रौंदा कितने बेबस और

मजलूमों को।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com