रविवार, 29 अक्तूबर 2017

हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है : आरसी चौहान


  

हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है

मां घंटे की छोटी सुई है घड़ी की
करते हुए काम बढ़ती है धीरे धीरे
पिता मिनट की
जो घंटे और सेकेंड के बीच
बिठाते हुए तारतम्य
बढते हैं मध्यम मध्यम
और बेटा सेकेंड की सुई की तरह
अकुताया
हांक रहा है दोनों को
करते हुए टिक टिक
जैसे हमारा परिवार एक घड़ी हो गया है।
  संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शनिवार, 30 सितंबर 2017

त्रासदी : आरसी चौहान




त्रासदी

भरे पूरे घर में
बेटे द्वारा अतिथि को
सभी से परिचय करवाना
और हारबेरियम की फाइल में
सूखे पत्तियों सा चिपके
कोने में पड़े मां बाप का परिचय
अतिथि से न करवाना
बहुत देर तक
कचोटता रहा मां बाप को
वैसे यह हमारे समय की
सबसे बड़ी त्रासदी तो नहीं
बनने जा रही।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

रविवार, 27 अगस्त 2017

जो कभी हुआ ही नहीं : आरसी चौहान






एक सपना
जिसे देखा ही नहीं कभी मैंने
अधजगी आंखों से
सुनहली रातों में
डरता रहा बहुत दिनों तक
उसके नुकीले नाखूनों से

एक अंधड़ तूफान
जिसमें उड़ता रहा
जिंदगी भर धुल धक्क्ड़ की माफिक
जो हकीकत में कभी आया ही नहीं

एक फूल
हमेशा करता रहा परेशान
अपनी ताजगी और महक से
जो खिला ही नहीं मेरे जीवन में
कभी संजीदगी से

एक नदी
जो मेरे भीतर
बलखाती हुई कभी बही नहीं
आज आमदा है तोड़ने को
सारे सब्रो का तटबंध

और अब एक प्रेम
जो कभी हुआ ही नहीं किसी से
आज बांध की तरह खड़ा है
डूब कर बह जाने तक
मेरे साथ-साथ।


संपर्क-   आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
             राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
             मेाबा0-8858229760ईमेल-puravaipatrika@gmail.com
                


सोमवार, 31 जुलाई 2017

बचपन में : आरसी चौहान




बचपन में

बचपन में एक दौर ऐसा भी था
कि निकल पड़ते साइकिल से
हवा से तेज उड़ियाते
छूने लटका हुआ आकाश
जहां धरती को चूम रहा होता
वह बे रोक टोक

बादलों को छूने की करते कोशिश
और उनकी खरगोश सी पीठ पर
बैठकर उड़ने की लालसा 
रह जाती धरी की धरी

थक हार लौट आते अपने अपने घर
इस आशा में कि
कल तो छू कर ही लौटेंगे क्षितिज
बादलों की पीठ पर बैठ कर ही छोड़ेंगे दम

आज इतने सालों बाद
देखता हूं अपने बच्चों को
पानी में तैराते हुए कागजी नाव
और सोचता  हूं
कि दुनिया घूमते हुए
कितना आगे निकल गई है
जबकि दुनिया है कि
घूम रही है बचपन के पीछे पीछे ।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
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शुक्रवार, 30 जून 2017

ये मत कहना : आरसी चौहान









ये मत कहना

वे आते हैं आंधी की तरह
धूल उड़ाते हुए
जैसे धरती उनके लिए
फुटबाल हो कोई

झुग्गी झोपड़ियों को
चबाती हुई उनकी मशीनें
मानों खुबसूरती का मापक गढ़ रही हों

उन्हें नहीं मालूम है
झुग्गी झोपड़ियों में लगी
सरपत,सरकंडे व शहतीरें
तन जायेंगी तीर व तलवार की तरह

खुरपी , हंसियां पिघल कर
पाइपगनों में बदल जाएगी

तब ये मत कहना कि
धरती खुबसूरत नहीं है।


संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
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शनिवार, 27 मई 2017

खामोशियों के बीच : आरसी चौहान






तुमने पृथ्वी को गाली दी
उसने कुछ नहीं कहा
तुमने आसमान पर उछाला कीचड़
उसने भी तुम्हें कुछ नहीं कहा
तुमने घोले हवाओं में जहर
उसने भी तुम्हें कुछ नहीं कहा
तुमने लतियाया सूरज और चांद को
इन्होंने ने भी कुछ नहीं कहा
तुमने उतार लिए नदियों के सारे कपड़े
इन्होंने ने भी कुछ नहीं कहा
इनके कुछ नहीं कहने
और इनकी खामोशियों के बीच
किसी तूफान के आने की
पूर्व सूचना तो नहीं ?

रविवार, 30 अप्रैल 2017

इनमें से कौन हैं ? : आरसी चौहान

 

 

इनमें से कौन हैं ?

पृथ्वी एक जंगल है
इसमें दो ही आदमी रहते हैं
पहला शिकारी
दूसरा शिकार
आप इनमें से कौन हैं ?

संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
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