फुलेसरी बुआ
गांव की पृष्ठभूमि
पर
आज तक लिखी गयी होंगी
ढेर सारी कविताएं
जिसमें गांव को
मोहरा बनाकर
थपथपाई होगी
बहुतों ने अपनी पीठ
और गांव वहीं का वहीं
बैठा रहा गुमसुम
पर इस कविता में
एक गांव जिसकी नसों
में
दौड़ती हैं खून की तरह
फुलेसरी फुआ जैसी अनगीनत
लड़कियां
और इन लड़कियों से अठखेलियां
करता गांव
कब किवदंतियों में
बदल गया
किसी को ठीक से कुछ
पता भी नहीं
हां !
दादा दादियों की कहानियों
में
आ जाती फुलेसरी फुआ
अपने पुरखे पुरनियों
के साथ
बैताल पच्चीसी की तरह
उनका यह नाम कैसे पड़ा
और वह पूरे गांव की
फुआ कैसे बन गयी ?
इसके बारे में कुछ
कह पाना सम्भव नहीं
पर यह कह सकते हैं
कि
कुछ वैसे ही जैसे
चांद बन जाता है सभी
लोगों का मामा
हां तो फुलेसरी फुआ
गीत गवनई में जितनी
आगे थीं
उससे कम नहीं थीं नाचने
में भी
उनके जीवन में वह कौन
सी घटना घटी कि
जन्म से जीवन निर्वाड़
तक
छोड़ न सकीं अपना गांव
और उनके जीवन के कैनवास
का
कौन सा कोना रह गया
रंगने से अधूरा
जो गांव की स्मृतियों
में
चमक उठता है कभी कभी
एक प्रसंग में कैसे
दाखिल हुई
फुलेसरी फुआ
अपने लाव लश्कर के
साथ
जब गांव में मनाया
जा रहा था पीड़िया त्योहार
जिसकी सबसे बड़ा कलाकार
थीं वह
पुलिसिया वर्दी के
रौब का कहना ही क्या
कोल्हाड़ में सोये दो
बड़े बुजुर्ग
पद में बाप दादा थे
दोनों
जो गरियाने में थे
बहुत बदनाम
उनको जगाकर ऐसे धमकाया
कि थरथराने लगे थे
दोनों
बस इतना ही कहा था
बुआ ने
कि साले ! ऐसे सोओगे
तो
गांव कि बहू बेटियों
का क्या होगा ?
फिर हक्का बक्का दोनों
रात की आंखों में ओझल
होते बुआ को
देखते रहे बहुत देर
तक
और आंकते रहे कि कौन
थी स्याली ?
इत्ती रात गये
पुलिसिया वर्दी में
और अब ये कि
उस अदम्भी कलाकार की
कलाएं किंवदंतियों
में बदल गयी हैं
जबकि उस कलाकार को
गुजरे हो गये बहुत
दिन।
संपर्क - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़, उत्तर प्रदेश 276001
मोबाइल -7054183354
ईमेल- puravaipatrika@gmail.com