आरसी चौहान
नथुनिया फुआ
ठेठ भोजपुरी की बुनावट में
संवाद करता
घड़रोज की तरह कूदता
पूरे पृथ्वी को मंच बना
गोंडऊ नाच का नायक-
“नथुनिया फुआ”
कब लरझू भाई से
नथुनिया फुआ बना
हमें भी मालूम नहीं भाई !
हां , वह अपने अकाट्य तर्कों के
चाकू से चीड़ फाड़कर
कब उतरा हमारे मन में
हुडके के थाप और
भभकते ढीबरी के लय-ताल पर
कि पूछो मत रे भाई !
उसने नहीं छोड़ा अपने गीतों में
किसी सेठ-साहूकार
राजा-परजा का काला अध्याय
जो डूबे रहे मांस के बाजार में आकंठ
और ओढे रहे आडंबर का
झक्क सफेद लिबास
माना कि उसने नहीं दी प्रस्तुती
थियेटर में कभी
न रहा कभी पुरस्कारों की
फेहरिस्त में शामिल
चाहता तो जुगाड़ लगाकर
बिता सकता था
बाल बच्चों सहित
राज प्रसादों में अपनी जिंदगी के
आखिरी दिन पर ठहरा वह निपट गंवार
गंवार नहीं तो और क्या कहूं उसको
लेकिन वाह रे नथुनिया फुआ
जब तक रहे तुम जीवित
कभी झुके नहीं हुक्मरानों के आगे
और भरते रहे सांस
गोंडऊ नाच के फेफडों में अनवरत
जबकि.....
आज तुम्हारे देखे नाच के कई दर्शक
जबकि.....
आज तुम्हारे देखे नाच के कई दर्शक
ऊँचे ओहदे पर पहुंचने के बाद
झुका लेते हैं सिर
और हो जाते शर्मशार ..................।
और हो जाते शर्मशार ..................।
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-09452228335
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/7.html
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