आरसी चौहान की कविता
पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
आज पहली बार
अम्लान सूर्य
हंसता हुआ
पूरब की देहरी लांघ रहा है
लडकियां हिरनियों की माफिक
कुलांचे भर बतिया रहीं
हवाओं के साथ
पतझड़ में गिरते पत्ते
रच रहे हैं
पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
हवा के बालों में
गजरे की तरह गुंथी
उड़ती चिड़ियां
पंख फैलाकर नाप रहीं आकाश
समुद्र की अठखेलियों पर
पेड़ पौधे पंचायत करने जुटे हैं
गीत गाती नदी तट पर
स्कूल से लौटे बच्चे
पेड़ों पर भूजा चबाते
खेल रहे हैं ओलापाती
युवतियां बीनी हुई
ईंधन की लकड़िया
बांध रहीं तन्मय होकर
चरकर लौटती गायें
पोखरे का पानी
पी जाना चाहतीं
एक सांस में जी भरकर
चौपाल में ढोल मज़ीरे की
एक ही थाप पर
नाच उठने वाली दिशाएं
बांध रही घुंघरू
थिरक थिरक
अब जबकी सोचता हूं
कि सपने का मनोहारी दृष्य
कब होगा सच ?
संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल) राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121 मोबा0-09452228335 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
......शानदार / धारदार अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर स्वाभाविक रचना !!
जवाब देंहटाएंभाई,सेटिंग में जाकर वर्ड-वेरिफिकेशन डिसेबल कर दो !
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