भूख के विरुद्ध
वि श्व की धरोहर में शामिल नहीं है
गंगा यमुना का उर्वर मैदान
जहां धान रोपती बनिहारिनें
रोप रही हैं
अपनी समतल सपाट सी जिंदगी
उनकी झुकी पीठें
जैसे पठार हो कोई
और निर्मल झरना
झर रहा हो लगातार
उनके गीतों में
धान सोहते हुए सोह रही हैं
अपने देश की समस्याएं
काटते हुए काट रही हैं
भूख की जंजीर
और ओसाते हुए
छांट रही हैं
अपने देश की तकदीर
लेकिन
अब उनके धान रोपने के दिन गये
धान सोहने के दिन गये
धान काटने के दिन गये
धान ओसाने के दिन गये
कोठली में धान भरने के दिन गये
अब धान सीधे मंडियों में पहुंचता है
सड़ता है भंडारों में
और इधर पेट
कई दिनों से अनशन पर बैठा है
भूख के विरुद्ध
जबसे काट लिए हैं इनके हाथ
मशीनों ने बड़ी संजीदगी से।
संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख,
टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-09452228335
ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com